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देवता: इन्द्र: ऋषि: वसिष्ठः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

गम॒द्वाजं॑ वा॒जय॑न्निन्द्र॒ मर्त्यो॒ यस्य॒ त्वम॑वि॒ता भुवः॑। अ॒स्माकं॑ बोध्यवि॒ता रथा॑नाम॒स्माकं॑ शूर नृ॒णाम् ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gamad vājaṁ vājayann indra martyo yasya tvam avitā bhuvaḥ | asmākam bodhy avitā rathānām asmākaṁ śūra nṛṇām ||

पद पाठ

गम॑त्। वाज॑म्। वा॒जय॑न्। इ॒न्द्र॒। मर्त्यः॑। यस्य॑। त्वम्। अ॒वि॒ता। भुवः॑। अ॒स्माक॑म्। बो॒धि॒। अ॒वि॒ता। रथा॑नाम्। अ॒स्माक॑म्। शू॒र॒। नृ॒णाम् ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजन परस्पर क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) निर्भय (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजा ! (यस्य) जिसके आप (अविता) रक्षक (भुवः) हों वह (मर्त्यः) मनुष्य (वाजयन्) पाने की इच्छा करता हुआ (वाजम्) विज्ञान वा अन्नादि को (गमत्) प्राप्त होता है जिन (अस्माकम्) हम लोगों के (रथानाम्) रथ आदि के तथा जिन (अस्माकम्) हम लोगों के (नृणाम्) मनुष्यों के भी (अविता) रक्षा करनेवाले (त्वम्) आप (बोधि) समझें वे हम लोग विज्ञान वा अन्न आदि को प्राप्त हों ॥११॥
भावार्थभाषाः - जब राजा प्रजाओं की और प्रजाजन राजाओं की रक्षा करें, तब सब की यथावत् रक्षा का संभव हो ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाजनाः परस्परं किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे शूरेन्द्र ! यस्य त्वमविता भुवः स मर्त्यो वाजयन् सन् वाजं गमद्येषामस्माकं रथानामेषामस्माकं नृणां चाऽविता संस्त्वं बोधि ते वयं वाजं प्राप्नुयाम ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गमत्) प्राप्नोति (वाजम्) विज्ञानमन्नादिकं वा (वाजयन्) प्राप्तुमिच्छन् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजन् (मर्त्यः) मनुष्यः (यस्य) (त्वम्) (अविता) रक्षकः (भुवः) भवेः (अस्माकम्) (बोधि) बुध्यस्व (अविता) रक्षकः (रथानाम्) यानादीनाम् (अस्माकम्) (शूर) निर्भयः (नृणाम्) मनुष्याणाम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - यदा राजा प्रजाः प्रजा राजानञ्च रक्षेत्तदा सर्वेषां यथावद्रक्षा संभवेत् ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा राजा प्रजेचे रक्षण करतो व प्रजा राजाचे रक्षण करते तेव्हा सर्वांचे यथायोग्य रक्षण शक्य होते. ॥ ११ ॥